Wednesday, February 17, 2016

ज़ख्मो को मेरे जब तेरे शहर की हवा लगती है।

बिछड़ के तुम से ज़िन्दगी सज़ा लगती है; यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है; तड़प उठता हूँ दर्द के मारे मैं; ज़ख्मो को मेरे जब तेरे शहर की हवा लगती है।

No comments:

Post a Comment