बिछड़ के तुम से ज़िन्दगी सज़ा लगती है; यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है; तड़प उठता हूँ दर्द के मारे मैं; ज़ख्मो को मेरे जब तेरे शहर की हवा लगती है।
No comments:
Post a Comment