Tuesday, January 19, 2016

माँ बहुत झूठ बोलती है.

...........माँ बहुत झूठ बोलती है............

सुबह जल्दी जगाने, सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो, मेरी पसंद की
कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूज़न बोलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में,
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,
समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे, फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मन सागर मेरा हो जाए खाली, ऐंसी वो गागर,
जब भी पूछो, अपनी तबियत हरी बोलती है।
उसके "जाये " हैं,  हम भी रग रग जानते हैं।
दुनियादारी में नासमझ, वो भला कहाँ समझती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ
खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

" 🙏हर माँ को समर्पित🙏 "

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Sunday, January 10, 2016

हमें रहेगा तेरा इंतज़ार!

आँखों में बसी है प्यारी सूरत तेरी;
और दिल में बसा है तेरा प्यार;
चाहे तू कबूल करे या ना करे;
हमें रहेगा तेरा इंतज़ार!

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मुस्कराकर धीरे से बोला.

उसने चुपके से मेरी आँखों पर हाथ रखकर पूछा...बताओ कौन ???

मैं मुस्कराकर धीरे से बोला... "मेरी जिन्दगी"...

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तुझे सिर्फ़, महोब्बत से शिकवा है.!!!

जुदा तो एक दिन, सांसे भी हो जाती हैं पगली.!!!

और तुझे सिर्फ़, महोब्बत से शिकवा है.!!!

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स्वय को ऐसा बनाओ••••

जहाँ तुम हो,
          वहाँ तुम्हें सब प्यार करें
जहाँ से तुम चले जाओ,
           वहाँ तुम्हें सब याद करें
जहाँ तुम पहुँचने वाले हो,
           वहाँ सब तुम्हारा इंतजार करे

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उसे छोड दिया जाये...!

तुझे पा ना सके, फिरभी सारी जिन्दगीं तुझे प्यार करेगे....!
ये जरूरी तो नही,....
जो मिल ना सके "
..उसे छोड दिया जाये...!

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सहेली फोन पे और हवेली लोन पे बन ही जाती है........!

लोग कहते है सहेली और

हवेली आसानी से नही बनती.........!

हम कहते है बँदे मे दम होना चाहिए!

सहेली फोन पे और

हवेली लोन पे बन ही जाती है........!

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तुम कब ग़लत थे ये कोई नहीं भुलता..."


" तुम कब सही थे ये कोई याद नहीं रखता
तुम कब ग़लत थे ये कोई नहीं भुलता..."

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कभी कभी याद करने में क्या बुराई हैं..

तोड़ दो न वो कसम जो खाई हैं..
कभी कभी याद करने में क्या बुराई हैं....

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यादें इन्सान को तोड़ती हैं …

” वादें ” और ” यादें ” में क्या अन्तर है …
वादें इन्सान तोड़ता है और यादें इन्सान को तोड़ती हैं …

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